क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान जगन्नाथ के मूर्तियों में उनके हाथ पैर क्यों नहीं है? आइए जानते हैं

Jagganath: संपूर्ण पुरी धाम में जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा के लिए भक्त उत्साहित है। जगन्नाथ धाम में 27 जून से रथ यात्रा की शुरुआत होने वाली है। हर साल रथ यात्रा बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है और इसके बाद उल्टा रथ भी निकाला जाता है इससे जुड़ी गई कहानी कई रोचक घटनाएं भी हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान जगन्नाथ जिसे जुड़ी इतनी प्रचलित कहानी है और जिनको पुरी धाम में पूरी आस्था के साथ पूजा जाता है आखिर उनके हाथ पैर क्यों नहीं है? आईए जानते हैं।
क्यों नहीं है भगवान जगन्नाथ के हाथ पैर?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार की बात है पुरी के तत्कालीन राजा इंद्रद्युम्न को भगवान जगन्नाथ ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि उन्हें समुद्र तट पर एक लकड़ी का लट्ठा मिलेगा। उसकी उन्हें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवानी है। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा से देवताओं ने विनती कि वे इस मूर्ति को बनाएं। इसके बाद वे मान गए और राजा इंद्रद्युम्न के दरबार में भेष बदल कर आए और राजा से अपनी शर्त बताते हुए मूर्ति बनाने को कहा। विश्वकर्मा ने राजा को शर्त बताते हुए कहा कि वे बंद कमरे में भगवान की मूर्ति बनाएंगे और जब तक मूर्ति बनकर तैयार नहीं हो जाती उस कमरे में कोई नहीं आएगा। राजा इस शर्त को मान गए। काम की शुरुआत हुआ और जैसे-जैसे दिन बीतता राजा की उत्सुकता बढ़ती गई, करीबन एक माह हो गए राजा और बेचैन हो उठे और फिर वे शर्त को दरकिनार करते हुए कमरे में घुस गए। राजा जैसे ही कमरे में घुसे विश्वकर्मा भगवान अंतर्ध्यान हो गए, इस पर राजा को बहुत अफसोस हुआ क्योंकि मूर्ति अधूरी थी और उसके हाथ-पैर नहीं थे। इसके बाद राजा ने बहुत कोशिश की मूर्ति के हाथ-पैर बन जाएं लेकिन कोई भी कारीगर यह नहीं कर सका और फिर राजा ने यही मूर्ति मंदिर में रखवा दी और तब से प्रभु की यही मूर्ति की पूजा की जाती है।
आँखें क्यों होती है बड़ी?
इसके अलावा, आखों को लेकर कथा है कि भगवान कृष्ण जब द्वारका में रहते थे तब एक दिन रोहिणी लोगों को वृंदावन की रासलीला बता रही हैं। वहीं, कृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी दरवाजे के पास खड़े होकर सुन रहे थे। कथा इतनी भावपूर्ण थी कि तीनों भाई-बहन प्रेम से भर उठे और उनकी आखें बड़ी हो गईं। इसी समय नारद मुनि आ गए और उनका यह रूप देख वह भी भावुक हो उठे और प्रभु से प्रार्थना की यह रूप हमेशा भक्तों को भी देखने को मिले। इस पर भगवान ने यह स्थायी रूप ले लिया।